जिंदगी आगे बढ़ते रहने का नाम
है। समय के साथ पक्की दोस्ती कर जिंदगी न ठहरती है न सोचने का वक्त देती है
वह तो बस समय के इशारे पर अपनी गति से चलती रहती है। जिंदगी के आगे बढ़ने
की गति में एक अलग तरह का प्रवाह होता है जिसमें सुख-दुख, अपना-पराया की
भावनाओं से लेकर वह सबकुछ रहता है, जो मनुष्य की चाहत रहती है।
आज के जमाने में बात करें, तो आज की लाइफ स्पीड में है - तेज, बिलकुल तेज... ऐसे में स्पीड के बीच कुछ मिनट सेल्फ एनालिसिस करने का समय लेना यानी ब्रेक लेना हो जाता है और ब्रेक के बाद क्या होगा किसे क्या पता? इसलिए न ब्रेक लिया जाए और न ही सेल्फ एनालिसिस किया जाए बस आगे बढ़ते जाएँ।
आप भी अपने आस- पास ऐसे लोगों को जानते होंगे, जो कि जिंदगी की गति को ओर तेज करने में जुटे रहते हैं और उनके तेज का मतलब होता है केवल पैसा... ( आजकल प्रसिद्धि को भी पैसे से ही जोड़कर देखा जाने लगा है) इस पैसे को प्राप्त करने के लिए वे तेज गति का ही सहारा लेते हैं, जैसे कल को कोई नौकरी नहीं मिलेगी या दुनिया ही समाप्त हो जाएगी।
उनका एक ही उद्देश्य रहता है हम जितना कमा लें उतना अच्छा है और इस कमाने की धुन में वे स्वयं का विश्लेषण नहीं कर पाते। अब आप कहेंगे अच्छे-भले पैसे कमा रहे हैं काहे का विश्लेषण, बस पैसे मिल रहे हैं न फिर सबकुछ ठीक है।
दोस्तो, पैसा कमाना अच्छी बात है पर इस पैसे को केवल दिखावे के लिए कमाना ठीक नहीं। हम अपने आसपास ही देखते हैं कि महँगे मोबाइल पर अकारण बात करते नवधनाढ्य, ईएमआई पर खरीदी नई कार में से निकलते हुए इस बात का दिखावा जरूर करेंगे की हम धनाढ्य हैं। फिर क्या धनाढ्य होना भी बुरा है, क्या महत्वाकांक्षाएँ और अमीर होने की कल्पना करना भी बुरा है, क्या जिंदगी में आगे बढ़ना बुरा है?
जी नहीं, आगे जरूर बढ़ें पर स्वयं का आत्मविकास करते हुए आगे बढ़ें। समाज में सभी लोग अगर आगे बढ़ने और केवल पैसा कमाने के बारे में सोचेंगे तब क्या होगा, इस बात की फिक्र शायद ही किसी को होगी। क्या सामाजिक संतुलन को बरकरार रखने के लिए यह जरूरी नहीं कि हर वह व्यक्ति जो नवधनाढ्य बनने की पहली सीढ़ी चढ़ चुका है अपने बारे में ठीक तरह से विश्लेषण करे और केवल पैसे कमाने की अंधी दौड़ की बजाए ऐसे आगे बढ़े जिससे आसपास के जरूरतमंदों को भी फायदा पहुँचे।
बातें बहुत ही आदर्शवाद में लपेटी हुई लगेंगी, पर इसका विकल्प कुछ नहीं है। सही मायने में हमें जिंदगी में तेज गति से आगे बढ़ने के दौरान कुछ क्षण सेल्फ एनालिसिस के लिए रखना चाहिए। आरंभिक रूप से आपको यह लगेगा कि यह समय व्यर्थ करना है पर कुछ समय बाद जब स्वयं की आवाज भीतर से आएगी कि आखिर इतना पैसा क्यों और किसलिए कमा रहे हैं?
क्या हम केवल पैसा कमाने की मशीन बन चुके हैं? इस पैसे से समाज को क्या लाभ? इस प्रकार के प्रश्न जब उठेंगे तब आप पहली बार कहेंगे, मैंने थोड़े ही समाज उत्थान का ठेका ले रखा है, मैं क्यों चिंतन करूँ...। यही वह समय रहेगा जब आपको सेल्फ एनालिसिस का महत्व समझ में आएगा।
आप न केवल स्वयं के बारे में बल्कि परिवार व समाज सभी के बारे में अलग तरह से सोच विकसित कर पाएँगे और 'समाज से मैं हूँ और मुझसे समाज' की भावना आप में बलवती होती नजर आएगी और शायद तभी हम एक ऐसे समाज की ओर विकसित हो सकेंगे, जो न केवल प्रगति में विश्वास करता है बल्कि सेल्फ एनालिसिस कर बुराइयों को उखाड़ फेंकने का भी माद्दा रखता हो।
आज के जमाने में बात करें, तो आज की लाइफ स्पीड में है - तेज, बिलकुल तेज... ऐसे में स्पीड के बीच कुछ मिनट सेल्फ एनालिसिस करने का समय लेना यानी ब्रेक लेना हो जाता है और ब्रेक के बाद क्या होगा किसे क्या पता? इसलिए न ब्रेक लिया जाए और न ही सेल्फ एनालिसिस किया जाए बस आगे बढ़ते जाएँ।
आप भी अपने आस- पास ऐसे लोगों को जानते होंगे, जो कि जिंदगी की गति को ओर तेज करने में जुटे रहते हैं और उनके तेज का मतलब होता है केवल पैसा... ( आजकल प्रसिद्धि को भी पैसे से ही जोड़कर देखा जाने लगा है) इस पैसे को प्राप्त करने के लिए वे तेज गति का ही सहारा लेते हैं, जैसे कल को कोई नौकरी नहीं मिलेगी या दुनिया ही समाप्त हो जाएगी।
उनका एक ही उद्देश्य रहता है हम जितना कमा लें उतना अच्छा है और इस कमाने की धुन में वे स्वयं का विश्लेषण नहीं कर पाते। अब आप कहेंगे अच्छे-भले पैसे कमा रहे हैं काहे का विश्लेषण, बस पैसे मिल रहे हैं न फिर सबकुछ ठीक है।
दोस्तो, पैसा कमाना अच्छी बात है पर इस पैसे को केवल दिखावे के लिए कमाना ठीक नहीं। हम अपने आसपास ही देखते हैं कि महँगे मोबाइल पर अकारण बात करते नवधनाढ्य, ईएमआई पर खरीदी नई कार में से निकलते हुए इस बात का दिखावा जरूर करेंगे की हम धनाढ्य हैं। फिर क्या धनाढ्य होना भी बुरा है, क्या महत्वाकांक्षाएँ और अमीर होने की कल्पना करना भी बुरा है, क्या जिंदगी में आगे बढ़ना बुरा है?
जी नहीं, आगे जरूर बढ़ें पर स्वयं का आत्मविकास करते हुए आगे बढ़ें। समाज में सभी लोग अगर आगे बढ़ने और केवल पैसा कमाने के बारे में सोचेंगे तब क्या होगा, इस बात की फिक्र शायद ही किसी को होगी। क्या सामाजिक संतुलन को बरकरार रखने के लिए यह जरूरी नहीं कि हर वह व्यक्ति जो नवधनाढ्य बनने की पहली सीढ़ी चढ़ चुका है अपने बारे में ठीक तरह से विश्लेषण करे और केवल पैसे कमाने की अंधी दौड़ की बजाए ऐसे आगे बढ़े जिससे आसपास के जरूरतमंदों को भी फायदा पहुँचे।
बातें बहुत ही आदर्शवाद में लपेटी हुई लगेंगी, पर इसका विकल्प कुछ नहीं है। सही मायने में हमें जिंदगी में तेज गति से आगे बढ़ने के दौरान कुछ क्षण सेल्फ एनालिसिस के लिए रखना चाहिए। आरंभिक रूप से आपको यह लगेगा कि यह समय व्यर्थ करना है पर कुछ समय बाद जब स्वयं की आवाज भीतर से आएगी कि आखिर इतना पैसा क्यों और किसलिए कमा रहे हैं?
क्या हम केवल पैसा कमाने की मशीन बन चुके हैं? इस पैसे से समाज को क्या लाभ? इस प्रकार के प्रश्न जब उठेंगे तब आप पहली बार कहेंगे, मैंने थोड़े ही समाज उत्थान का ठेका ले रखा है, मैं क्यों चिंतन करूँ...। यही वह समय रहेगा जब आपको सेल्फ एनालिसिस का महत्व समझ में आएगा।
आप न केवल स्वयं के बारे में बल्कि परिवार व समाज सभी के बारे में अलग तरह से सोच विकसित कर पाएँगे और 'समाज से मैं हूँ और मुझसे समाज' की भावना आप में बलवती होती नजर आएगी और शायद तभी हम एक ऐसे समाज की ओर विकसित हो सकेंगे, जो न केवल प्रगति में विश्वास करता है बल्कि सेल्फ एनालिसिस कर बुराइयों को उखाड़ फेंकने का भी माद्दा रखता हो।
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