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नो स्‍ट्रगल, नो सक्‍सेस

बि‍ना स्‍ट्रगल के सक्‍सेस नहीं मि‍लती ये तय है। एपीजे अब्‍दुल कलाम से लेकर धीरूभाई अंबानी तक आप कि‍सी की भी ऑटोबायोग्राफी पढ़ लें, सबके पीछे की स्‍टोरी में स्‍ट्रगल ही स्‍ट्रगल है और क्‍लाइमेक्‍स में सक्‍सेस। हाँ, और उसके आगे है एक हसीन जिंदगी, लेकि‍न साथ में फि‍र से एक स्‍ट्रगल है, टॉप पर बने रहने का। मतलब स्‍ट्रगल के बि‍ना जिंदगी नहीं है।
संघर्ष में तप कर ही व्यक्ति कर्मठ बनता है और फिर कितनी भी असफलता प्राप्त हो, वह संघर्ष करने का रास्ता एक बार देख चुका होता है। इसी अनुभव के बल पर वह लगातार बाधाओं को पार करना जानता है। कई व्यक्ति ऐसे होते हैं, जिनकी जिंदगी संघर्षों से ही बनी होती है, जबकि कुछ व्यक्तियों की जिंदगी में संघर्ष ही नहीं लिखे रहते।

ऐसे व्यक्ति, जिन्होंने संघर्ष करना नहीं सीखा होता है परिस्थितियाँ उन्हें संघर्ष करना सीखा ही देती है और यह बात उतनी ही सही है कि जितना आप संघर्ष से मुँह मोडेंगे, उतना ही स्वयं के साथ समझौता करते जाएँगे। संघर्ष से मुँह न मोड़ें और उसका दिलेरी के साथ सामना करें।

एक छोटा परिवार रहता है, जिसमें दो बच्चे और माता-पिता रहते हैं। घर के मुखिया का शानदार बिजनेस रहता है और उनकी धर्मपत्नी घर पर ही काम करती है। कई बार वे भी अपने पति की सहायता के लिए ऑफिस जाती हैं और काम भी करती है। कुछ समय बाद वे रोजाना ऑफिस जाने लगीं और अपने पति का हाथ बँटाने लगी।

परिस्थितियाँ बदलीं और पति का बिजनेस घाटे में जाने लगा। मात्र तीन वर्ष में हालात यह हो गए कि बिजनेस को बंद ही करना पड़ा और पति को पार्ट टाइम जॉब करना पड़ रहा था। यह देखकर पत्नी को अच्छा नहीं लग रहा था, पर वह कुछ भी नहीं कर पा रही थी। एक दिन उसने भी नौकरी करने की ठानी।


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स्वयं का बायोडाटा बनाया और कई संस्थानों में नौकरी के आवेदन भी दिए। कई जगहों पर वह इंटरव्यू ही सही तरह से दे नहीं पाई, क्योंकि आज तक उसने कभी ऐसा किया ही नहीं था। काफी मेहनत के बाद भी वह नौकरी नहीं पा सकी। बावजूद इसके उसने नौकरी ढूँढना जारी रखा। एक जगह पर पार्ट टाइम की नौकरी उसे आखिर मिल ही गई, पर इस बीच उसके माँ की तबीयत खराब हो गई।

उसे अपनी माँ के स्वास्थ्य का भी ख्याल रखना पड़ रहा था। घर पर बच्चों व पति का भी ख्याल रखना पड़ रहा था। इस कारण वह नौकरी पर सही तरीके से ध्यान नहीं दे पा रही थी। जहाँ पर नौकरी कर रही थी, उन्हें अब फुल टाइम करने वाले की जरूरत थी और वह यह नहीं कर पा रही थी। लिहाजा नौकरी छोड़ना पड़ी।

नौकरी छोड़ कर वह घर पर लौटी और खूब रोई। काफी देर तक रोने के बाद उसके मन में आया कि वह संघर्ष करना नहीं छोड़ेगी और अपने परिवार की खातिर नौकरी जरूर करेगी, पर उसकी मेहनत कुछ रंग नहीं लाई। एक दिन माँ की सेवा करते समय मन में विचार आया कि समाज में और भी वृद्ध होंगे, जिन्हें उसकी माँ की तरह सेवा की जरूरत होगी, क्यों न वह और लोगों की मदद भी करे और उसके बदले में पैसा कमाएँ।

उसने दूसरे ही दिन आस-पड़ोस में और कई अन्य सार्वजनिक जगहों पर इस प्रकार के पोस्टर लगा दिए और पहले ही दिन दो लोगों ने संपर्क कर उसकी सेवा लेने की बात कही। धीरे-धीरे लोगों की संख्या बढ़ने लगी और उस महिला ने अपने साथ अन्य लोगों को जोड़ा और उन्हें वह बाकायदा पैसा भी देती थी। कुछ ही समय बाद संपूर्ण शहर में उसका एकछत्र राज हो गया और उसके पति ने भी उसके इस कार्य में हाथ बँटाना आरंभ कर दिया।

दोस्तो निराशा के भाव में बह जाना काफी आसान है, पर इस भाव से उपर उठकर स्वयं को संघर्ष के लिए तैयार करना ही एक मजबूत व्यक्तित्व की निशानी होती है।

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